मुंडन संस्कार के प्रति यह मान्यता है कि इससे शिशु का मस्तिष्क और बुद्धि दोनों ही पुष्ट होते हैं और गर्भगत मलिन संस्कारों से मुक्ति मिलती है। इस संस्कार में सिर के बाल पहली बार उतारे जाते हैं। शिशु जब एक वर्ष का हो जाए अथवा तीन वर्ष की आयु पूरी कर ले तो उसका मुंडन संस्कार करा दिया जाता है। इसके अलावा कुल परंपरा के अनुसार पांचवें अथवा सातवें वर्ष में
भी मुंडन संस्कार कराए जाने की प्रथा है ।
आश्वलायन गृह्यसूत्र के अनुसार तेन ते आयुषे वपामि सुश्लोकाय स्वस्तये । अर्थात् मुंडन संस्कार करने से शिशु की आयु में वृद्धि होती है और वह बड़ा होने पर सुंदर एवं कल्याणकारी कार्यों की ओर प्रवृत्त होता है । यजुर्वेद में मुंडन संस्कार का उल्लेख करते हुए कहा गया है-
निवर्तमाम्यायुषेऽन्नाष्याय प्रजननाय ।
रायस्पोषाय सुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय ॥
अर्थात् हे शिशु ! मैं तुम्हारी आयु वृद्धि के लिए, अन्न ग्रहण करने में समर्थ बनाने के लिए, उत्पादन क्षमता प्रदान करने के लिए, ऐश्वर्य वृद्धि के लिए, सुंदर संतान प्राप्ति के लिए, बल एवं पराक्रम प्राप्त करने के योग्य बनाने के लिए तुम्हारा मुंडन संस्कार करता हूं ।