गायत्री मंत्र इस प्रकार है-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
गायत्री मंत्र को सनातन एवं आदि मंत्र माना गया है। पुराणों के अनुसार सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी को गायत्री मंत्र आकाशवाणी से प्राप्त हुआ था। सृष्टि सृजन की शक्ति भी उन्हें गायत्री मंत्र की साधना से ही प्राप्त हुई थी। गायत्री मंत्र के महत्त्व को इस बात से भली प्रकार समझा जा सकता है कि ब्रह्माजी ने इसकी व्याख्या में ही चार वेदों की रचना कर दी थी। इसी कारण गायत्री को वेदमाता कहा जाता है। शास्त्रों में गायत्री के बारे में सर्ववेदानां गायत्री सारमुच्यते आया है। इसका अर्थ है गायत्री सभी वेदों का सार है।
बृहद्योगी याज्ञवल्क्य स्मृति में गायत्री मंत्र की श्रेष्ठता के बारे में कहा गया है-
नास्ति गंगासमं तीर्थं न देवः केशवात् परः ।
गायत्र्यास्तु परं जप्यं न भूतो न भविष्यतिः ॥
अर्थात् सृष्टि में गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं, श्रीकृष्ण के समान कोई देव नहीं और गायत्री के समान जप करने योग्य कोई मंत्र नहीं है ।
श्रीमद्भगवद् गीता में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि गायत्री छंदसामऽ हम अर्थात् मंत्रों में गायत्री मंत्र मैं ही हूं ।
देवी भागवत पुराण के अनुसार नृसिंह, सूर्य, वराह (देवपरक), तांत्रिक और वैदिक मंत्रों का अनुष्ठान गायत्री मंत्र के जप के बिना निष्फल हो जाता है ।
सावित्री उपाख्यान के अनुसार यदि दिनभर में गायत्री मंत्र का केवल एक बार भी जप कर लिया जाए तो पूरे दिन के पाप नष्ट हो जाते हैं। यदि दिन भर में इस मंत्र को दस बार जप लें तो दिन-रात के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं । यदि सौ बार इस मंत्र का जप कर लिया जाए तो महीने भर के और यदि एक हजार बार जप कर लिया जाए तो वर्षों के पाप नष्ट हो जाते हैं। एक लाख बार के जप से जीवनभर के, दस लाख बार के जप से अनेक जन्मों के और एक करोड़ जप से समस्त जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। दस करोड़ गायत्री मंत्र का जप करने से ब्राह्मण को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री मंत्र से बढ़कर जप करने योग्य कोई मंत्र नहीं है और व्याहृति के समान आहुति मंत्र नहीं है। शास्त्रों के अनुसार गायत्री मंत्र का विधि-विधानपूर्वक जप करने से शारीरिक, आध्यात्मिक और मानसिक बाधाओं से मुक्ति मिलती है। मन में नवस्फूर्ति और आशाओं का संचार होता है। संयम, शांति, सदाचार, प्रेम, संतोष और विवेकशीलता जैसे गुणों का उदय होता है। जबकि दुख, दुर्बलता और दुर्भाव जैसे अवगुणों का नाश होता है । इसके अतिरिक्त विद्या, बल, तेज, कीर्ति, आयु, संतति और धन की वृद्धि होती है ।
गायत्री मंत्र में 24 अक्षर होते हैं, जो 24 देवताओं और 24 ऋषियों की शक्तियों से संपन्न माने जाते हैं। गायत्री मंत्र का उच्चारण करने से देवताओं और ऋषियों से संबद्ध शरीरस्थ नाड़ियों में प्राणशक्ति का स्पंदन आरंभ हो जाता है। इसके साथ ही संपूर्ण शरीर में ऑक्सीजन का संचार बढ़ जाता है । इस प्रकार शरीर के समस्त विकार जलकर नष्ट हो जाते हैं ।