तुलसी के पौधे का महत्त्व वर्णित करते हुए पद्मपुराण में कहा गया है कि जिस घर में तुलसी का उद्यान होता है, वह घर तीर्थ स्वरूप होता है और उसमें यमराज के दूत प्रवेश नहीं करते। जिस घर की भूमि तुलसी के नीचे की मिट्टी से पुती होती है, उस घर में रोगों के कीटाणु प्रवेश नहीं करते ।
धर्मग्रंथों के अनुसार जो व्यक्ति प्रतिदिन तीनों समय तुलसी दल (पत्तों) का सेवन करता है, उसका शरीर अनेक चांद्रायण व्रतों के फल के समान पवित्रता प्राप्त कर लेता है। जो व्यक्ति जल में तुलसीदल डालकर स्नान करता है, वह सभी तीर्थों में स्नान कर पवित्र होने के समान हो जाता है और सभी यज्ञों में बैठने का अधिकारी होता है। प्रतिदिन संध्याकाल में तुलसी का पूजन-
अर्चन करके उसके नीचे दीप प्रज्वलित करने से सती वृंदा की सहज ही कृपा मिल जाती है और भगवान विष्णु स्वयं उसकी रक्षा करते हैं।
एक मान्यता के अनुसार सती वृंदा की भक्ति और भगवान विष्णु के प्रति उसका समर्पण तुलसी की सुगंध और उसके पत्तों में समा गई है।
तुलसी की पवित्र सुगंध हवा के झोंकों के साथ जिस दिशा में जाती है, उस ओर रहने वाले सभी प्राणी पवित्र एवं दोषरहित हो जाते हैं। जिस स्थान पर तुलसी का एक भी पौधा होता है, वहां पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि सभी देव और पुष्कर आदि सभी तीर्थ एवं गंगा आदि सरिताओं का निवास होता है। इस प्रकार तुलसी के पौधे की पूजा-अर्चना करने से समस्त देवों, तीर्थों और
पवित्र नदियों के पूजन-अर्चन का फल प्राप्त होता है ।
कार्तिक मास में तुलसी का पौधा लगाने का विशेष महत्त्व है। ‘स्कंद पुराण’ के अनुसार इस मास में जो व्यक्ति तुलसी के जितने पौधे रोपता है, उसे उतने ही जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है। कार्तिक मास में तुलसी के स्पर्श, दर्शन, आरोपण, सिंचन और ध्यान से जन्म-जन्मांतर के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं ।
तुलसी समस्त सौभाग्य प्रदान करने वाली और आधि-व्याधि नष्ट करने वाली है। इसके बिना किए जाने वाले धार्मिक कर्मकांड पूर्ण फलदायी नहीं होते। जो दान तुलसी को साथ मिलाकर किया जाता है, वह अपार फल प्रदान करता है। तुलसी वन की छाया में किए जाने वाले श्राद्ध से पितरों को विशेष तृति मिलती है। सोमवती अमावस्या को तुलसी के पौधे की 108 परिक्रमा करने से दरिद्रता नष्ट होती है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में तुलसी की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है –
सुधाघटसहस्त्रेण सा तुष्टिर्न भवेद्धरेः ।
या च तुष्टिर्भनेवेन्नपां तुलसीपत्र दानतः ॥
अर्थात् सहस्रों घड़े अमृत से स्नान करने पर भी भगवान विष्णु को उतनी तृप्ति नहीं मिलती, जितनी वे तुलसी का एक पत्ता चढ़ाने से प्राप्त करते हैं प्रतिदिन तुलसी का एक पत्ता चढ़ाकर भगवान विष्णु की पूजा करने वाले को एक लाख अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इसी पुराण में एक अन्य श्लोक में कहा गया है कि मृत्यु के समय जिसके मुख में तुलसी के जल का एक कण भी प्रवेश कर जाता है, वह अवश्य ही विष्णु लोक (स्वर्ग) में चला जाता है ।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी तुलसी का बड़ा महत्त्व है। तुलसी का पौधा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। इसके सेवन से बहुत-सी गंभीर बीमारियां दूर हो जाती हैं । तुलसी दूषित जल के शोधन में भी अत्यंत उपयोगी होता है ।