नामकरण संस्कार के बारे में स्मृति संग्रह में लिखा है-
आयुर्वर्थोऽभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहृतेस्तथा ।
नामकर्मफलं त्वेतत् समुद्दिष्टं मनीषिभिः ॥
अर्थात् नामकरण संस्कार से आयु एवं तेज की वृद्धि होती है। नाम की प्रसिद्धि से व्यक्ति का लौकिक व्यवहार में एक अलग ही अस्तित्त्व उभरता है। नामकरण संस्कार संपन्न करने के संबंध में अलग-अलग स्थानों पर समय की विभिन्नताएं सामने आई हैं। पाराशर गृह्यसूत्र के अनुसार- दशम्यामुत्थाप्य पिता नाम करोति । जन्म के दसवें दिन सूतिका का शुद्धिकरण यज्ञ कराकर नामकरण संस्कार संपन्न कराया जाता है।
गोभिल गृह्यसूत्रकार के अनुसार जननाद्दशरात्रे व्युष्टे शतरात्रे संवत्सरे वा नामधेयकरणाम् । सौ दिन या एक वर्ष बीत जाने के बाद भी नामकरण संस्कार कराने की विधि प्रचलन में है ।
नामकरण संस्कार में बच्चे को शहद चटाकर और मृदुलता व प्यार-दुलार के साथ सूर्यदेव के दर्शन कराए जाते हैं। इस अवसर पर कामना की जाती है कि यह बच्चा सूर्य की प्रखरता और तेजस्विता धारण करे। इसके बाद भूमि को नमन करके देव संस्कृति को श्रद्धा के साथ समर्पण किया जाता है। संस्कार के समय उपस्थित सभी सज्जन शिशु का नाम लेकर उसके लिए स्वास्थ्य, समृद्धि, चिरंजीवी और धर्मपरायणता की कामना करते हैं ।
नामकरण के लिए तीन आधार हैं। पहला आधार यह है कि शिशु जिस नक्षत्र में जन्म लेता है, नाम उसी नक्षत्र से आरम्भ हो। इसका लाभ यह होता है कि ज्योतिषीय राशिफल समझने में नाम से ही जन्म नक्षत्र का आभास हो जाता है। दूसरा आधार यह है कि नाम जीवन के उद्देश्य प्राप्ति हेतु प्रेरणा का कार्य करता है, और तीसरा आधार यह है कि नाम से वंश, गोत्र और जाति का
बोध हो जाता है।