गणेशजी के संबंध में शत मोदकप्रिय उक्ति प्रचलित है। इस उक्ति का अर्थ है कि एक बार में 100 लड्डू खा जाना गणेश जी को अत्यंत प्रिय है। उनका प्रिय व्यंजन मिष्टान होने के कारण वे निरंतर गुड और मोदक का सेवन करते ही रहते है।
आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो अधिक मीठा खाने से मधुमेह का रोग हो जाता है। इस रोग की निवृति में कैथ और जामुन का बड़ा महत्त्व है। गणेशजी के पूजन में विशेष रूप से एक मंत्र का जाप किया जाता है और इस मंत्र में गणेश जी को जामुन चढ़ाने का औचित्य भी प्रकट किया गया है –
गजाननं भूतगणादि सेवितं, कपित्थ जम्बूफलसार भक्षितम ।
उमासुतं शोक विनाशकारणं, नमामि विघ्नेश्वर पादपङ्कजम ।।
उस गजानन को जो भूतो-गणों और प्राणियों द्वारा पूजनीय है, नमस्कार है। उसे कैथ जामुन का फल अत्यंत प्रिय है। इन फलों को चढ़ाने से उमासुत ( गणेशजी ) के सभी शोक-रोग ( मधुमेह जो अधिक मिष्ठान खाने से उन्हें हो गया ) नष्ट हो जाते हैं। ऐसे विघ्नेश्वर के चरणों में मैं नमन करता हूँ।
उपयुक्त श्लोक में प्रयुक्त शब्द उमासुतं का शाब्दिक अर्थ यद्यपि उमा ( पार्वती ) के पुत्र अर्थात गणेशजी से ही है, तथापि माता पार्वती संपूर्ण जगत की माता है, अतएव इस श्लोक में उमासुतं शब्द को सम्पूर्ण जगत के प्राणियों के सन्दर्भ में देखने से एक बहुत बड़े संकट से मुक्ति का मार्ग भी दिखाई पड़ता है। वह यह है कि यदि कोई अधिक मिष्ठान का सेवन करता है और वह मधुमेह से ग्रसित हैं तो कैथ और जामुन के फल का नित्य सेवन करने से उसे इस रोग से मुक्ति मिल सकती है।
देवताओं को अर्पित किए जाने वाले प्रसाद को भगतजन स्वयं ही ग्रहण करते हैं। यदि गणेशजी के नित्य पूजन अर्चना के बाद उन पर चढ़ाए जाने वाले फल ( कैथ जामुन ) का उपासक श्रद्धाभाव से सेवन करे तो मधुमेह जैसे गंभीर रोग से उसे सहज ही छुटकारा मिल सकता है।
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