पीपल के वृक्ष की पूजा क्यों की जाती है?

धर्म शास्त्रों में पीपल वृक्ष को भगवान विष्णु का निवास माना गया है। स्कंध पुराण के अनुसार पीपल की जड़ में श्रीविष्णु, तने में केशव, साखाओ में नारायण, पत्तों में भगवान श्रीहरि और फल में सब देवताओं के युक्त भगवान अच्युत का निवास है।

श्रीमद भगवदगीता के अनुसार अर्जुन को उपदेश देते हुए स्वयं भगवान कृष्ण कहते हैं कि हे! अर्जुन वृक्षों में मैं पीपल का विष हूँ। ज्ञानी और भक्तजन इसी कारण पीपल के वृक्ष की सेवा कर के सहस्त्रों पुणयों का फल अर्जित करते हैं । यही इस वृक्ष की धार्मिक पवित्रता का मुख्य कारण है।

पदमपुराण के अनुसार पीपल की परिक्रमा करके प्रणाम करने से आयु में वृद्धि होती है। पीपल के वृक्ष को जल्द से सिंचित करने वाले प्राणी को सहज ही स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या काल में पीपल की परिक्रमा और पूजन करने से साढ़ेसती और दहिया का प्रकोप कम हो जाता है।

धर्मशास्त्रों के अनुसार पीपल में पितरों का वास होने के साथ ही तीर्थों का भी वास है। यही कारण है कि मुंडन आदि धार्मिक संस्कार पीपल के वृक्ष के नीचे ही संपन्न कराने की रीति है। वैज्ञानिक अनुसंधानों के अनुसार पीपल का वृक्ष दिन रात पर्याप्त मात्रा में प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन का निष्पादन करता रहता है। प्राणवायु से ही जगत के प्राणियों में प्राणों का संचार होता है और ऐसा जगत के पालनहार श्री विष्णु ही करते हैं।

पीपल के वृक्ष की छाया शीत ऋतु में उष्णता और ग्रीष्म ऋतु में शीतलता प्रदान करती है। इसके पत्तों से स्पर्शित होकर प्रवाहित होने वाली वायु और पत्तों के परस्पर टकराने पर उत्पन्न होने वाली विशिष्ट ध्वनि अनेक बीमारियों में संक्रामक कीटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता रखती है। आयुर्वेद के अनुसार पीपल वृक्ष की जड़, छाल और इसके पत्तों एवं फलों से प्राणियों के अनेक रोगों की सफल औषधियाँ बनती है। इस प्रकार पीपल के वृक्ष की पवित्रता और महत्त्व धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक भी हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पीपल के वृक्ष का निरंतर पूजन-अर्चन और परिक्रमा करने और जल चढ़ाने से सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है। पर्याप्त पुण्य मिलता है और पित्रात्माएं तृप्त होकर कार्य सिद्ध में सहायक होती है। मनोकामना की पूर्ति के लिए पीपल के वृक्ष के तने पर सूत लपेट कर इच्छित लक्ष्य की पूर्ति हेतु प्रार्थना की जाती है।

पीपल के वृक्ष पर सूर्योदय से पूर्व दरिद्र देवता का अधिकार होता है। इसके विपरीत सूर्योदय के बाद इस पर लक्ष्मी का अधिकार होता है। यही कारण है कि सूर्योदय के बाद ही पीपल की पूजा की जाती है, जबकि सूर्योदय के पूर्व इसकी पूजा का निषेध किया गया है। धार्मिक श्रद्धालु जन मंदिर परिसर पर पीपल का वृक्ष अवश्य लगाते हैं। धर्मग्रंथों में पीपल को काटना या नष्ट करना ब्रह्महत्या के समान पाप कहा गया है।

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