hindu marriage

सगोत्र विवाह करना क्यों वर्जित कहा गया है ?

विवाह की परिपाटी निर्धारित करते हुए ‘मनु स्मृति‘ में लिखा गया है-
असपिण्डा च या मातुरसगोत्रा च या पितुः ।
सा प्रशस्ता द्विजातीनां दारकर्मणि मैथुने ॥

अर्थात् ऐसी कन्या जो माता की छः पीढ़ियों में से न हो और पिता के गोत्र से भी न मिलती हो, उससे वैवाहिक संबंध स्थापित करना उचित है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अध्ययनों से स्पष्ट हो चुका है कि सगोत्रीय स्त्री- पुरुष के बीच वैवाहिक संबंध स्थापित हो जाने पर उनसे उत्पन्न संतानों में आनुवंशिक दोषों की अधिकता होती है। ऐसे दंपत्तियों में प्राथमिक बंध्यता, संतानों में जन्मजात विकलांगता और मानसिक जड़ता जैसे अनेक विकार अधिक होते हैं। इसके अलावा ऐसे दंपतियों की स्त्रियों में गर्भपात और गर्भकाल में अथवा जन्म के बाद शिशुओं की मृत्यु के अधिक मामले देखने में आते हैं। इससे जन्मजात हृदय विकारों और जुड़वां बच्चों के जन्म में भी कमी आ जाती है।

हैदराबाद के सरोजनी देवी आई हॉस्पिटल में किए गए एक शोध अध्ययन से पता चला है कि सगोत्रीय शादी हो जाने पर उनका होने वाला बच्चा नेत्र रोग का अधिक शिकार बनता है । इस अध्ययन से पता चला है कि ऐसे दंपतियों के 200 बच्चों में से एक बच्चा नेत्र रोग से पीड़ित होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *