Worshipping Peepal Tree

सनातन धर्म में वृक्षों की पूजा-उपासना का क्या महत्त्व है और यह क्यों की जाती है?

सनातन धर्म-संस्कृति में वृक्षों को अत्यंत पवित्र और देवतास्वरूप माना गया है। मनु स्मृति के अनुसार वृक्ष योनि पूर्व जन्मों के कर्मों का परिणाम मानी गई है। वृक्षों को जीवित और सुख-दुख का अनुभव करने वाला माना गया है परम पिता परमात्मा ने वृक्ष का सृजन संसार का कल्याण करने के लिए ही किया है, ताकि वह परोपकार के कार्यों में ही जुटा रहे। वृक्ष भीषण गर्मी में
तपते हुए भी अन्य प्राणियों को अपनी शीतल छाया प्रदान करता है। सदपुरुष के समान आचरण करते हुए वृक्ष अपना सर्वस्व दूसरों के कल्याण के लिए अर्पित कर देते हैं। वृक्षों की सघन छाया तले बैठकर ही अनेक ऋषि-मुनि और तपस्वियों ने सर्दी, गर्मी और बरसात से बचते हुए तपस्या की और सिद्धि को प्राप्त किया।

एक अन्य धर्म ग्रंथ के अनुसार जो व्यक्ति वृक्षों का आरोपण करते हैं, वे वृक्ष परलोक में उसके पुत्र के रूप में जन्म लेते हैं। जो व्यक्ति वृक्ष का दान करता है, वृक्ष के पुष्पों द्वारा देवताओं के पूजन से उन्हें प्रसन्न करता है और मेघ के बरसने पर छाता बनकर अभ्यागतों को और जल से पितरों का प्रसन्न करता है, वह समृद्धिशाली होता है।

विभिन्न प्रकार के वृक्षों की पूजा-उपासना भिन्न-भिन्न प्रकार से की जाती है। ‘अशोक अष्टमी‘ के दिन अशोक वृक्ष की पूजा की जाती है। अशोक वृक्ष की पूजा करने से शोक नष्ट होते हैं और प्रसन्नता प्राप्त होती है। ‘वट-सावित्री‘ के अवसर पर वट (बरगद) वृक्ष की पूजा की जाती है। वट वृक्ष की पूजा करने से स्त्रियों को अचल सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कार्तिक मास में आंवले के वृक्ष की पूजा एवं परिक्रमा करके स्त्रियां अपने सुहाग का वरदान मांगती हैं। वास्तव में आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का निवास माना गया है । अतः आंवले के वृक्ष की पूजा-परिक्रमा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। तुलसी का प्रतिदिन पूजन करना और जल चढ़ाना स्त्रियों के लिए अनेक शुभकारी परिणाम देने वाला कहा गया है। पीपल के
वृक्ष में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का निवास माना गया है। अतः पीपल के वृक्ष की पूजा-अर्चना करने से अत्यंत शुभ लाभ मिलते हैं। आम के वृक्ष के पंत्ते, मंजरी, छाल और लकड़ी का उपयोग परम पवित्र यज्ञ और अनुष्ठानों में किया जाता है। पारिजात वृक्ष की ‘कल्पतरु’ मानकर पूजा-अर्चना की जाती है ।

अनावश्यक रूप से वृक्षों को काटना और उनकी शाखाएं, पत्तियां तोड़ना अधार्मिक माना गया है, क्योंकि वृक्षों में भी प्राण होते हैं । यह तथ्य अबवैज्ञानिक भी निर्विवाद रूप से सिद्ध कर चुके हैं कि वृक्ष भी सुख-दुख और गर्मी, सर्दी व बरसात जैसी सभी परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं और इनका भली प्रकार अनुभव भी करते हैं। यही कारण है कि धर्मशास्त्रों में वृक्षों को नष्ट
करने वाले की निंदा की गई है। इस बारे में ऋग्वेद में कहा गया है-
मा काकम्बीरमुद्वहो वनस्पतिम् शस्तीर्वि हि नीनशः ।
मोत सूरो अह एवा चन ग्रीवा अदद्यते वेः ॥

अर्थात् दुष्ट बाज पक्षी जिस प्रकार अन्य निर्बल पक्षियों की गरदन मरोड़कर उन्हें दुख देता है और मार डालता है, तुम भी वैसे मत बनो। इन वृक्षों को दुख मत दो, इनका उच्छेदन मत करो। ये पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं को शरण देते हैं।

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