गणेशजी को विघ्नहर्ता और ऋद्धि सिद्धि का स्वामी माना गया। इनके स्मरण, ध्यान, जप और पूजन से समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है। ये बुद्धि के अधिष्ठाता, साक्षात प्रणव स्वरूप और शीध्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं। यही कारण है कि शुभ कार्यों में सर्वप्रथम गणेशजी का पूजन किया जाता है। इसी आधार पर भारतीय समाज में एक उक्ति भी प्रचलित हो गई – जब किसी कार्य को आरंभ किया जाता है तो प्रायः कहा जाता है कि “कार्य का श्रीगणेश हो गया है।”
किसी भी शुभ कार्य को प्रारंभ करते समय श्री गणेशाय नमः का उच्चारण करते हुए श्रीगणेश जी के निम्न मंत्र का उच्चारण किया जाता है।
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभा: |
निर्विघ्न कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा | |
शुभ कार्यों में सर्वप्रथम गणेशजी का पूजन क्यों किया जाता है, इस संबंध में दो रोचक पौराणिक कथाएं भी हैं। शिव पुराण के अनुसार, एक बार सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और करबद्ध होकर उनकी स्तुति करने के बाद बोले, ‘’हे महादेव! कृपा करके बताइए कि समस्त देवताओं का स्वामी किसे चुना जाए?’’
पर्याप्त चिंतन मनन के बाद महादेव देवताओं से बोले, “मेरी दृष्टि में आप सभी देवता सर्वगुण सम्पन्नः, धैर्यशील और साम्यर्थवान है। समस्त देवताओं में से किसे स्वामी चुना जाए, यह बात इस पर निर्भर करती है कि कौन सबसे अधिक दूरदर्शी, वाकपटु और कर्तव्य-अकर्तव्य तथा उचित-अनुचित का तुरंत निर्णय करके शीघ्र कदम उठाने वाला हो । “
“हे महादेव ! ऐसी क्षमता तो सभी देवताओं में निहित है, फिर स्वामित्व का निर्णय कैसे हो?” महादेव ने माता पार्वती की ओर भोलेपन से निहारा और फिर क्षणभर विचार करके बोले, “हे देवताओं ! जो भी देवता तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा करके सर्वप्रथम कैलाश पर्वत पर आएगा, वहीं सभी देवताओं का स्वामी होगा और शुभ कार्यों के सर्वप्रथम पूजनीय होगा।”
भगवान महादेव की बात सुनकर सभी देवता अपने अपने तीव्रगामी वाहनों पर आरुड़ होकर पृथ्वी की तीन परिक्रमा करने के लिए चल पड़े।
गणेश जी का वाहन चूहा है। वह अत्यंत धीमी गति से चलता है, किंतु गणेश जी की बुद्धि-चातुर्य अत्यंत तीव्र है। कुछ क्षण सोच विचार करने के बाद गणेश जी अपने वाहन चूहे पर सवार होकर गए और पास बैठे भगवान शिव तथा माता पार्वती की परिक्रमा करने लगे। तीन परिक्रमा करने के बाद गणेश जी सभी देवताओं से पहले भगवान शिव के सम्मुख जाकर खड़े हो गए।
गणेशजी के इस कार्य से भगवान शिव बड़े प्रसन्न हुए और उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा। “बुद्धि-चातुर्य में तुम्हारे समान इस सृष्टि में अन्य कोई नहीं है। माता-पिता की तीन परिक्रमा करने से तीनों लोकों की परिक्रमा का पुण्य मिलता है। जो कि तुमने प्राप्त कर लिया है। अतएव तुम ही सब देवताओं के स्वामी और शुभ कार्यों में सर्वप्रथम पूजनीय होगे । “
अब तक पृथ्वी की तीन परिक्रमा करके सभी देवता कैलाश पर्वत पर आ गए थे। उन्होंने भगवान शिव का निर्णय सुना तो सभी उनके सामने नतमस्तक हो गए। फिर वे सभी अपने-अपने धाम को लौट गए और तभी से गणेशजी शुभ कार्यों में अग्रपूज्य एवं देवताओं के स्वामी हो गए।
पदम पुराण के अनुसार सृष्टि का सृजन हो जाने के बाद देवताओं में यह विवाद छिड़ गया कि किस देवता को सर्वप्रथम पूजनीय माना जाए? जब इस विवाद को वे हल ना कर सके तो सभी देवता सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। उन्होंने स्तुतिगान के बाद अपना मंतव्य उनके सामने रखा।
ब्रह्मा जी देवताओं से बोले, “जो देव संपूर्ण ब्राह्मण की सात परिक्रमा करके सर्वप्रथम मेरे पास आएगा, वही सभी शुभ कार्यों में सर्वप्रथम पूजनीय होगा।”
ब्रह्मा जी की घोषणा सुनकर सभी देवता अपने-अपने वाहन पर सवार होकर ब्रह्मांड की परिक्रमा के लिए तीव्र गति से चल पड़े। इसी बीच देवऋषि नारद गणेश जी के पास पहुंचे और उन्हें ब्रह्मांड की परिक्रमा का सरल उपाय सुझाया। नारद जी द्वारा सुझाए उपाय के अनुसार गणेश जी ने भूमि पर “राम” लिखकर उसकी साथ परिक्रमा कर डाली और सर्वप्रथम ब्रह्माजी के पास जा पहुंचे।
गणेशजी के इस “राम” नाम की परिक्रमा से ब्रह्मा जी बड़े प्रसन्न हुए और उन्हें समस्त देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय घोषित कर दिया। वास्तव में राम नाम साक्षात विष्णु का स्वरूप है और भगवान विष्णु में ही संपूर्ण ब्राह्मण निहित है। राम नाम की परिक्रमा से गणेश जी को ब्रह्मांड की परिक्रमा का फल प्राप्त हुआ और वे सभी देवताओं के स्वामी भी कहलाए ।
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